जा रही हो न
मुझे छोड़कर
तुम्हें तुम्हारा सुहाग रखे खुश इतना
न कर पाओ तुम उसे जितना
पर मुझे न भूल जाना
हमेशा याद रखना - याद रखना
लेकिन इक दायरे के अन्दर
खुशियों से नाता जोड़ना
ग़मों से मुंह मोड़ना
अपने लिए - मेरे लिए
अपने उसके लिए
जो तुम्हारी ज़िन्दगी की
अगली किरण है
हाँ- हाँ
भूल के सारे गिले शिकवे
दिल से लगाना मेरी मुबारकबाद
शुरू करो
इक नयी ज़िन्दगी
अपने जीवन साथी के साथ।
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
24th June, 1999, '41'
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