मैंने तेरी याद में कितने बहाए अश्क
उन अश्कों को गिनाऊं कैसे
मैं तुम्हें करता हूँ याद कैसे
वो अदा मैं तुम्हें बताऊँ कैसे
दूर तुमसे रह के दिन बिताता हूँ कैसे
ये तुम्हें समझाऊं कैसे
कब तुमसे करता हूँ मैं प्यार
वो वक़्त मैं बताऊँ कैसे
जुदाई मैं जब करता है मेरा दिल तुम्हें याद
वो दिल की थकन मैं बताऊँ कैसे
तुम्हें चाहता हूँ देखना किस रूप में
वो रूप मैं बताऊँ कैसे
मेरा मन तुमसे मिलने को कर रहा है कितना
इस बात को तुम तक मैं पहुंचाऊं कैसे
जब भी देखता हूँ मैं चाँद में तुम्हें
वो चाँद की मुस्कराहट मैं बताऊँ कैसे
दिल के करीब हो के, फिर भी तुमसे दूर
आज "अजनबी' को मैं बताऊँ कैसे
उन अश्कों को गिनाऊं कैसे
मैं तुम्हें करता हूँ याद कैसे
वो अदा मैं तुम्हें बताऊँ कैसे
दूर तुमसे रह के दिन बिताता हूँ कैसे
ये तुम्हें समझाऊं कैसे
कब तुमसे करता हूँ मैं प्यार
वो वक़्त मैं बताऊँ कैसे
जुदाई मैं जब करता है मेरा दिल तुम्हें याद
वो दिल की थकन मैं बताऊँ कैसे
तुम्हें चाहता हूँ देखना किस रूप में
वो रूप मैं बताऊँ कैसे
मेरा मन तुमसे मिलने को कर रहा है कितना
इस बात को तुम तक मैं पहुंचाऊं कैसे
जब भी देखता हूँ मैं चाँद में तुम्हें
वो चाँद की मुस्कराहट मैं बताऊँ कैसे
दिल के करीब हो के, फिर भी तुमसे दूर
आज "अजनबी' को मैं बताऊँ कैसे
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
5th June, 1999, '39'
5th June, 1999, '39'
खुबसूरत ग़ज़ल ......
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