न हँसना मेरी ज़िन्दगी पे यारो
गर न मिले मुझे मेरी मंजिल
कोशिश तो कर रहा हूँ पूरी
फिर भी कोई चीज रह जाये अधूरी
तो कर भी क्या सकता हूँ
न जी सकता हूँ न मर सकता हूँ
हंसके तुमको नहीं मिलेगा कुछ
पर मेरा दिल कहेगा बहुत कुछ
इसीलिए तो कह रहा हूँ यार
न करना ऐसा एक भी बार
उस वक़्त मैं जहाँ भी हूँ
समझ लेना यही है "शाहिद" की मंजिल
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
30th June, 1999, '40'
गर न मिले मुझे मेरी मंजिल
कोशिश तो कर रहा हूँ पूरी
फिर भी कोई चीज रह जाये अधूरी
तो कर भी क्या सकता हूँ
न जी सकता हूँ न मर सकता हूँ
हंसके तुमको नहीं मिलेगा कुछ
पर मेरा दिल कहेगा बहुत कुछ
इसीलिए तो कह रहा हूँ यार
न करना ऐसा एक भी बार
उस वक़्त मैं जहाँ भी हूँ
समझ लेना यही है "शाहिद" की मंजिल
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
30th June, 1999, '40'
आख़िर मंजिल मिल ही गयी
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