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Wednesday, October 19, 2011

बांहों की गोलाईयाँ थीं

चम- चम चमकता चाँद था
सितारों की झीमी रौशनी थी
हवाओं के झोंके भी थे
मौसम भी खुशगवार था
ऐसे में, मैंने उसकी मांग को सजाया था

दिल में धड़कन थी
मन में लगन थी
होठों पे हंसी थी
चेहरे पे ख़ुशी थी
ऐसे में, मैंने उसकी मांग को सजाया था

बांहों की गोलाईयाँ थीं
आँचल की परछाईयाँ थीं
हम दोनों की साँसें थीं
हम दोनों की आहें थीं
ऐसे में, मैंने उसकी मांग को सजाया था

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी"
18th Apr., 2000 '79'

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