ये दुनिया बदल गयी
ये नज़ारे बदल गए
बदल गया सारा ज़माना
पर मेरे दोस्त तुम न बदलना
तुम्हीं से है ख़ुशी तुम्हीं से है ग़म
तुमसे बिछड़कर ये ज़िन्दगी
ज़िन्दगी न रहेगी
हो जाएगी काले आसमां की तरह
जिसमें नहीं आता है कुछ और नज़र
सिवाए अँधेरा और कालेपन के
गर तुमने न दी जुदाई
और जीवन की राह पर पकड़ा मेरा हाथ
तो मैं हो जाऊंगा
उस फूल की तरह
जो अभी-अभी
कली से फूल बना है
जिसमें आ रही है इक खुशबू
जो दे रही है गवाही कि
तुम मुझमें हो, मुझमें ।
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'19' 23rd Apr. 1999
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Friday, April 29, 2011
Thursday, April 28, 2011
सपने
तेरा ये दिल है घर मेरा
नज़रें तेरी हैं मेरी निगाहें
जिनमें
सजाता हूँ मैं कुछ हसीं सपने
जो सच होंगे कभी अपने
इक हरा भरा आँगन होगा
बीच में होगा पानी
घर के ऊपर होंगे कुछ फूल
जिन्हें देखकर
मन लहलहाएगा
और दिल मचल जायेगा
कुछ देर बाद तुम रूठ जाओगी
और मैं मनाऊंगा
हँसना तुम्हारा होगा इशारा
रूठे से मन जाने का
फिर भर लोगी तुम मुझे अपनी बाहों में
और मैं तुझे अपनी बाहों में
देखेंगे फिर कुछ और
हसीं और हसीं सपने।
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'18' 15th Apr, 1999
नज़रें तेरी हैं मेरी निगाहें
जिनमें
सजाता हूँ मैं कुछ हसीं सपने
जो सच होंगे कभी अपने
इक हरा भरा आँगन होगा
बीच में होगा पानी
घर के ऊपर होंगे कुछ फूल
जिन्हें देखकर
मन लहलहाएगा
और दिल मचल जायेगा
कुछ देर बाद तुम रूठ जाओगी
और मैं मनाऊंगा
हँसना तुम्हारा होगा इशारा
रूठे से मन जाने का
फिर भर लोगी तुम मुझे अपनी बाहों में
और मैं तुझे अपनी बाहों में
देखेंगे फिर कुछ और
हसीं और हसीं सपने।
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'18' 15th Apr, 1999
Tuesday, April 26, 2011
करीब
ये ज़मीं ये आसमां
ये सितारे
मांगते हैं तुम्हें
क्योंकि
चाहते हैं हम तुम्हें
नज़र कहती है मेरे पास आओ
दिल कहता है मेरे करीब आओ
पर न जाओ तुम किसी के पास
आ जाओ बस मेरे और मेरे पास
नज़रें से नज़रें मिला लो
दिल से दिल को मिला लो
करें फिर कुछ प्यार की बातें
छोड़ कर दुनिया की बातें
याद करें अब वो रातें
जब होता था मेरा चेहरा
तुम्हारे इन हसीं हाथों में
और मैं खो जाता था वहां
नहीं पहुँच सकता कोई जहाँ
लेकिन
जल्दी करो इस दूरी को दूर
बिन तेरे गुजारी रातों को
कर दो अब चूर - चूर ।
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'17' 15th Apr. 1999
Thursday, April 21, 2011
यही है तमन्ना
चाहते हैं हम सिर्फ तुमको
और शायद तुम हमको
तुम्हें हो या न हो भरोसा
पर मुझे है पूरा भरोसा
कि
मेरे दिल में सिर्फ तुम हो
तेरे दिल में हम हों न हों
तुमसे मिलने पर ख़ुशी होती है ऐसी
डूबता को मिलने पर किनारा होती है जैसी
तुमसे जुदा होने पर हालत होती है ऐसी
समंदर से लहर जुदा होती है जैसी
टूट पड़ता है ग़म का अम्बार
छिन जाती है दामन से सारी ख़ुशी
जब कोई करता है बातें जुदाई
कि
कि
न बिछड़ना, न होना जुदा
यही है तमन्ना , यही है आरज़ू !!!!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'16' 15th Apr. 1999
Monday, April 11, 2011
किताबें

जब कभी सोचता हूँ दुनिया के नजारों में
तो इनका हल ढूंढता हूँ अपनी किताबों में
नहीं आता मुझे जब कुछ याद
तो खो जाना चाहता हूँ अपनी किताबों में
उसे यहाँ खोजता हूँ वहाँ खोजता हूँ
लेकिन देखता हूँ उसे अपनी किताबों में
नहीं होता है जब कोई मेरे साथ
तो दिल को लगाता हूँ अपनी किताबों में
ईश्वर ने बनाया है इसे सोच समझकर
इसलिए इंसान मिल जाना चाहता है अपनी किताबों में
जब भी आता है मेरे ऊपर कोई ग़म
तो ख़ुशी तलाश करता हूँ अपनी किताबों में
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'15' 15th Apr. 1999
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