दिल ने जिसे चाहा था
होठों ने जिसे पुकारा था
वही तस्वीर हो तुम
ख्वाबों की तामीर हो तुम
उल्फत के दरिया में
बहता हुआ आब हो तुम
तसव्वुर है तुम्हारा
तमन्नाएँ हैं तुम्हारी
तबस्सुम भी है तुम्हारी
मगर तुम हो हमारी
गर देख लूं तुम्हें
तो आ जाये खुमार
इकरारे इश्क़ कर लूं
फिर करूँ ज़िक्रे यार
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
2nd July, 2000 '98'
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Thursday, December 15, 2011
Saturday, December 10, 2011
नात
अरमाँ है इक दिल में कि
कभी उनका रोज़ा देखने जायेंगे
आएगा कभी वो दिन जब कि
खुद को रोज़ा के रूबरू पाएंगे
या रब इक बार चौखट पर सर रखने का अरमाँ हो पूरा
हम तो बस रोते और रोते ही जायेंगे
रखता हूँ दिल में आशिक़े मुहम्मद कहलाने कि तमन्ना
दुनिया वाले दें चाहे जितने ग़म हँस के सह जायेंगे
कब्र को चीर कर आयेंगे जब मुनकरनकीर
हम तो बस बारहा दरुदे पाक गुनगुनायेंगे
हश्र में होगा गुनाहों से लदा जब ये "अजनबी"
मेरे आका ज़रूर मेरी शफा-अत फरमाएंगे
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
25th June 2000, '97'
कभी उनका रोज़ा देखने जायेंगे
आएगा कभी वो दिन जब कि
खुद को रोज़ा के रूबरू पाएंगे
या रब इक बार चौखट पर सर रखने का अरमाँ हो पूरा
हम तो बस रोते और रोते ही जायेंगे
रखता हूँ दिल में आशिक़े मुहम्मद कहलाने कि तमन्ना
दुनिया वाले दें चाहे जितने ग़म हँस के सह जायेंगे
कब्र को चीर कर आयेंगे जब मुनकरनकीर
हम तो बस बारहा दरुदे पाक गुनगुनायेंगे
हश्र में होगा गुनाहों से लदा जब ये "अजनबी"
मेरे आका ज़रूर मेरी शफा-अत फरमाएंगे
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
25th June 2000, '97'
देखते हैं किताबों में तुम्हें
देखते हैं किताबों में तुम्हें
पाते हैं बातों में तुम्हें
लाना चाहता हूँ मैं
हर रोज़ ख्वाबों में तुम्हें
सजाना चाहता हूँ मैं
अपनी पलकों पे तुम्हें
हर घड़ी आँखों से अपनी
प्यार करना चाहता हूँ तुम्हें
मेरी ज़िन्दगी में छ जाओ हर सू
छिप-छिप के देखना चाहता हूँ तुम्हें
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
1st July, 2000, '96'
पाते हैं बातों में तुम्हें
लाना चाहता हूँ मैं
हर रोज़ ख्वाबों में तुम्हें
सजाना चाहता हूँ मैं
अपनी पलकों पे तुम्हें
हर घड़ी आँखों से अपनी
प्यार करना चाहता हूँ तुम्हें
मेरी ज़िन्दगी में छ जाओ हर सू
छिप-छिप के देखना चाहता हूँ तुम्हें
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
1st July, 2000, '96'
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