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Thursday, April 10, 2014

मेरी कोशिशों को वादा न समझना

मेरी कोशिशों को वादा न समझना 
प्यार का जुनूं  है सितम न समझना 

हर कश्ती की मंजिल है दरिया का साहिल 
मगर हर साहिल को अपना न समझना 

अक्सर रूह जाती सी लगती है मुहब्बत में 
दिल में ऐसा होने को तड़पना न समझना 

हर इक रात ले के आती है एक नया ख्वाब 
ये तो सपना है हक़ीकत न समझना 

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
5th Oct. 01, '156'

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