Followers

Wednesday, November 14, 2012

पहचानने में समय न लगा

घुटने से ऊपर उसके कपड़े  थे 
कंधे से ऊपर उसके बाल थे 
दुपट्टा से कोई वास्ता  न था 
होठों  पे कोई कैमीकल लाल था 
चाल  में उसकी 
हवा के झोंके सी लहरें थीं 
अदाओं में उसकी नशा सा था 
मुझे पहचानने में समय न लगा
नए  ज़माने की 
वो आधुनिक लड़की थी !

-  मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
1st June, 2001, '138'
 

Tuesday, November 13, 2012

इश्क़े मुस्तफा

 जिस दिल  में इश्क़े  मुस्तफा नहीं 
अल्लाह की नज़र में वो दिल नहीं 

लाख करे वो सजदे मगर
कोई सजदा इबादत में शामिल नहीं 

हर लम्हा  हाथ में तस्वीह हो, जुबां पे कलमा
बेमुहम्मद के  ज़र्रा भर नेकी हासिल नहीं

शबो  रोज लगाए डुबकियां वो सागरे नमाज़ में
मगर ऐसे सागर का कोई  साहिल नहीं  

सुन्नियत  ज़िंदा है और ताकयामत ज़िंदा रहेगी
मार सके इसे जो ऐसा कोई कातिल नहीं

- मुहम्मद शाहिद  मंसूरी "अजनबी"
2nd Apr. 2001, '137'