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Tuesday, July 31, 2012

दिन रात रहता है , तसव्वुर तुम्हारा

इस जहां से तुझको मैं छीन लूँगा
अपने दिल की साँसों में छिपा लूँगा
धड़कते दिल की धड़कनों में बिठा लूँगा
जब चाहूँगा तेरा दीदार कर लूँगा

दिन रात रहता है , तसव्वुर तुम्हारा
हर लम्हा रहता है ख्याल तुम्हारा
मेरी ज़िंदगी में जाओ तुम
वरना खुद को ज़िंदगी से दूर कर लूँगा

तड़पता रहता हूँ दिन भर
सोचता रहता हूँ शब भर
मेरी साँसों में समा जाओ तुम
वरना खुद को साँसों से छीन लूँगा

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
5th Aug. 2000 '118'

Monday, July 30, 2012

मेरी हंसीं अब तेरे लवों से आती है

बादलों की राह बूंदों तक जाती है
मेरी राह सिर्फ तुम तक जाती है

तेरे साथ रहूँ तो मेरे हर सू खुशियों की सौगात होती है
तुझसे जुदा होता हूँ तो मेरी जान निकल जाती है

हर दिन और हर रात ,मैं ग़म में रहता हूँ
मेरी हंसीं अब तेरे लवों से आती है

आये कभी जुदाई बस मिलन ही मिलन हो
मेरे हमनवा मिलन से पहले जुदाई आती है

मेरी आँखों से पानी बहता है यूँ "अजनबी"
बरसात होती है कि बस होती ही जाती है

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
3rd Aug. 2000, '117'

Sunday, July 29, 2012

कह गयी वो सारी बात

कह गयी वो सारी बात आँखों ही आँखों में
दे गयी दिल को दर्द आँखों ही आँखों में

नहीं किया था अह्सासे मुहब्बत कभी मैंने
करा गयी अहसास आँखों ही आँखों में

इज़हार भी किया, प्यार भी किया उसने
अपनी प्यारी सी आँखों ही आँखों में

छीने हैं उसने होश मेरे एक नज़र से
नशे में कर दिया है आँखों ही आँखों में

यही इल्तिजा है उससे "अजनबी"
यूँ ही प्यार करती रहे आँखों ही आँखों में

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
1st Aug. 2000, '116'

Saturday, July 28, 2012

मुझको रुला रहा है- मुझको रुला रहा है

आँचल के साए में छुप- छुप के वो देखना तेरा
आँखें मिला के वो आँखें झुकाना तेरा
मुझको रुला रहा है- मुझको रुला रहा है

इशारों ही इशारों में वो बातें करना तेरा
पाकर आहट मेरी यहाँ वहां वो छिपना तेरा
मुझको रुला रहा है- मुझको रुला रहा है

बांतों ही बांतों में वो होठों में उंगली दबाना तेरा
इक तबस्सुम के संग वो मुझसे दूर जाना तेरा
मुझको रुला रहा है- मुझको रुला रहा है

मेरे इंतज़ार में शब-शब भर वो जागना तेरा
तन्हाईयों में मुझसे मिलने वो आना तेरा
मुझको रुला रहा है - मुझको रुला रहा है

चांदनी में मेरे संग वो वक़्त गुजारना तेरा
हाँ-हाँ और - में मेरे लवों को वो चूमना तेरा
मुझको रुला रहा है- मुझको रुला रहा है

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
1st Aug. 2000, '115'

Friday, July 27, 2012

ज़िंदगी से लड़ा हूँ मैं

ज़िंदगी से लड़ा हूँ मैं
हालातों से जूझा हूँ मैं
फिर भी तेरा हूँ मैं

शबनम में भीगा हूँ मैं
माय में डूबा हूँ मैं
फिर भी तेरा हूँ मैं

तन्हाईयों के संग रहा हूँ मैं
परछाईयों के संग चला हूँ मैं
फिर भी तेरा हूँ मैं

सागर से गहरा हूँ मैं
फलक से ऊंचा हूँ मैं
फिर भी तेरा हूँ मैं

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
31st July, 2000, '114'

Thursday, July 26, 2012

गुल बनकर आये हो मेरी ज़िंदगी में

ऐ हमसफर, ऐ हमनशीं
दिल लगाकर दिल लगी न करना
प्यार के वास्ते

किये हैं तुमने वादे जो हमसे
उन्हें निभाना न भूलना
मुहब्बत के वास्ते

दे दिया है तुम्हें अपना दिल
इसे प्यार करना न भूलना
उल्फत के वास्ते

है बना लिया तुम्हें अपनी ज़िंदगी
मेरी ज़िंदगी से बेवफाई न करना
दीवानगी के वास्ते

गुल बनकर आये हो मेरी ज़िंदगी में
कभी खार से मत बनना
इश्क़ के वास्ते

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
31st July, 2000, '113'

Wednesday, July 25, 2012

बस यूँ ही मिलने की दुआ करते रहेंगे

हम दोनों अपना इक इतिहास रचेंगे
कोई न मिल सका प्यार में
हम मिलकर रहेंगे- मिलकर रहेंगे

देखेंगे कितनी जुदाई देगी ये दुनिया
जुदाई में कितना तड़पायेगी ये दुनिया
सारा जुल्म हम हंसकर सहेंगे

हम हैं पागल हम हैं दीवाने
ये दुनिया जाने न जाने
हम अहसास कराकर रहेंगे

इश्क़ की आग में जले हैं हम
मुहब्बत के समंदर में डूबे हैं हम
ताउम्र तुम्हीं से प्यार करते रहेंगे

दो दिल मगर इक जान हैं हम
सारे जहां से अन्जान हैं हम
बस यूँ ही मिलने की दुआ करते रहेंगे

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
20th May, 2000, '112'

Tuesday, July 24, 2012

इक बार इश्क़ से हुए जो बावस्ता

दूसरों को खुश होने की सलाह देते रहे
और खुद ग़म के आशियाँ में तड़पते रहे

शम्मा को रोशनाई की दुआ देते रहे
और खुद परवानों की तरह शम्मा में जलते रहे

इक बार इश्क़ से हुए जो बावस्ता
की बस रोते और सिसकियाँ भरते रहे

मय पी नहीं मगर देखा बहुत क़रीब से
नशे को उसके समझने की कोशिश करते रहे

जुदाई की आग में खूब जले तुम "अजनबी"
फिर भी दीवानों को दीवानों से मिलाते रहे

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
30th July, 2000, '111'

Monday, July 23, 2012

अब कोई मुहब्बत की ग़ज़ल सुनाओ

अब मुझे और भी न सताओ 
मेरे दिल को दूर से न बहलाओ 

नहीं आ सकते गर मेरे सामने 
तो मेरे ख्वाबों में ही आओ 

पास बैठो जी भर के देख लूं 
नज़रों से अपनी थोड़ी ही माय पिलाओ 

हो जाएँ दो दिल एक हमारे 
इतना ही तुम क़रीब  आ जाओ 

नग़मे सुने हैं मैंने बहुत "अजनबी"
अब कोई मुहब्बत की ग़ज़ल सुनाओ 

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
3rd  Jan., 2000 '110'

Sunday, July 22, 2012

होती रहे प्यार की बरसात बार-बार

ऐसी भी रात आयेगी
जब हम उनका घूंघट उठाएंगे
शर्मायेंगे वो लाख बार
मगर मुस्करायेंगे ज़रूर एक बार

कितनी खुशकिस्मत होगी वो रात
होंगे जब हम उनके साथ
चाहेगी वो रूठ जाएँ एक बार
मगर मुस्कराएगी लाख बार

हर सू होंगी बहारें ही बहारें
दूर बहुत दूर होगी हमसे खिजां
आएगा हवा का इक ऐसा झोंका
छू जायेगा जो बार - बार

मिल जायेंगे प्यार के दो दीवाने
पास आयेंगे खुशियों के खजाने
छाये रहें खुशियों के बादल
होती रहे प्यार की बरसात बार-बार

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
31st July, 2000, '109'

Friday, July 20, 2012

बहारों के साये में तुम्हीं तो लाये हो मुझे

जिसे समझो अपना
वही हो जाता है पराया
क्या तुम भी हो जाओगे ऐसे मेरे यारा

लाखों में से है मैंने तुमको चुना
बस तुमको ही है दिल में बसाया
क्या भूल तो जाओगे मुझे मेरे यारा

साँसों की साँसों में तुमको है समाया
अपने हर सू बस तुमको ही पाया
क्या तन्हा छोड़ तो जाओगे मुझे मेरे यारा

रुसवा करके जहाँ को है तुमको अपना बनाया
नज़रों में अपनी बस तुमको ही छिपाया
क्या गर्दिशों में छोड़ तो जाओगे मुझे मेरे यारा

बहारों के साये में तुम्हीं तो लाये हो मुझे
उल्फत की राहों पर तुम्हीं ने चलना सिखाया
क्या भंवर में ही छोड़ तो जाओगे मुझे मेरे यारा

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
29th July, 2000 '108'

इनको कोई आवाज़ दे दे

कहती हुयी हैं कुछ ये ग़ज़लें
इनको कोई आवाज़ दे दे

है इनमें जो कशिश
सारी दुनिया को वो सुना दे

होती है क्या उल्फत
मुहब्बत परस्तों को बता दे

हो जाए बस अह्सासे ग़ज़ल
दिले ग़ज़ल कोई चाक कर दे

ग़ज़लों से मुहब्बत है जिनको "अजनबी"
मेरे ख्यालों को उनके रूबरू कर दे

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
26th July, 2000, '107'

Thursday, July 19, 2012

लौटा दे फिर कोई वो दिन

हैं ये वो रास्ते
गुजरे थे जहां से हम तुम

खुशकिस्मत हैं ये रास्ते
गुजरे थे यहाँ से हम तुम
कितना हंसीं था वो समाँ
साथ थे जब हम तुम

गूंजती थी तुम्हारी हँसियाँ
लहराता था तुम्हारा आँचल
काश जाए फिर वो खुशियाँ
हो जाएँ साथ हम तुम

बातों - बातों में वो तेरा रूठ जाना
फिर मेरा वो तुझको मनाना
लौटा दे फिर कोई वो दिन
जाएँ क़रीब हम तुम

आँखें तुम्हारी नम थीं
होंठ भी तुम्हारे चुप थे
मुड़-मुड़ के देखा था तुमने हमें
हुए थे जुदा जब हम तुम

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
23rd July, 2000, '106'

Wednesday, July 18, 2012

रहूँ हरदम किताबों के हर सू

पहुँच सकूं मैं मंजिले मक़सूद
बस इतना हौसला चाहिए

रहूँ हरदम किताबों के हर सू
बेपनाह किताबों से मुहब्बत चाहिए

छुए जो दिल को लिखूं ऐसी इक ग़ज़ल
हाथ में कलम दिल में जज़्बात चाहिए

इंसान की गहराई नाप सके जो "अजनबी"
ऐसा ही इक पैमाना चाहिए

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
16th July, 2000 '105'

Thursday, July 12, 2012

बागवाँ ने हर कली के नाज़ उठाये थे

बागवाँ ने हर कली के नाज़ उठाये थे
फिर भी कुछ गुल किम्वा शिगुफ्ता निकले

जुस्तुजू में निकले थे हम जिस हंसी की
सारा जहां मिला मगर एक वो ही मिले

पुकारा था लोगों ने मुझे कहकर दीवाना
उन्हीं ने अब नाम दिया है दिलजले

मेरी मय्यत पे चढाने आये हैं फूलों की चादर
अब भी उन्हें खबर नहीं हम उनसे जुदा हो चले

सुकूँ को तलाशा तुमने बहुत "अजनबी"
मगर जहाँ गए बस जले ही जले

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी'
15th July, 2000, '104'

जुस्तुजू है उस करीने की हमें

कैसे बताएं तुम्हें सनम
कितना चाहते हैं तुम्हें हम

लफ्जों को सजाऊँ मैं कैसे
हो अहसास मेरी चाहत का तुम्हें हमदम

जुस्तुजू है उस करीने की हमें
बता दे मेरी मुहब्बत तुमको सनम

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
12nd July, 2000 '103'