रातों को अश्क न बहाऊँ
उसकी तस्वीर को सीने से न लगाऊं
तो काम चलता नहीं
सब कुछ देखूं सब कुछ सोचूँ
किताबों से दिल न बहलाऊँ
तो काम चलता नहीं
अपने दिल के आईने को
तुझसे न सजाऊँ
तो काम चलता नहीं
मुहब्बत के अपने चमन को
तेरी यादों से न महकाऊँ
तो काम चलता नहीं
इश्क में कुर्बान है "अजनबी"
मुहब्बत परस्तों को आराम न पहुँचाऊँ
तो काम चलता नहीं
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
2nd July, 2000, '100'