हैं ये वो रास्ते
गुजरे थे जहां से हम तुम
खुशकिस्मत हैं ये रास्ते
गुजरे थे यहाँ से हम तुम
कितना हंसीं था वो समाँ
साथ थे जब हम तुम
गूंजती थी तुम्हारी हँसियाँ
लहराता था तुम्हारा आँचल
काश आ जाए फिर वो खुशियाँ
हो जाएँ साथ हम तुम
बातों - बातों में वो तेरा रूठ जाना
फिर मेरा वो तुझको मनाना
लौटा दे फिर कोई वो दिन
आ जाएँ क़रीब हम तुम
आँखें तुम्हारी नम थीं
होंठ भी तुम्हारे चुप थे
मुड़-मुड़ के देखा था तुमने हमें
हुए थे जुदा जब हम तुम
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
23rd July, 2000, '106'
वाह! बहुत खूब लिखा है....
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