पहुँच सकूं मैं मंजिले मक़सूद
बस इतना हौसला चाहिए
रहूँ हरदम किताबों के हर सू
बेपनाह किताबों से मुहब्बत चाहिए
छुए जो दिल को लिखूं ऐसी इक ग़ज़ल
हाथ में कलम दिल में जज़्बात चाहिए
इंसान की गहराई नाप सके जो "अजनबी"
ऐसा ही इक पैमाना चाहिए
बस इतना हौसला चाहिए
रहूँ हरदम किताबों के हर सू
बेपनाह किताबों से मुहब्बत चाहिए
छुए जो दिल को लिखूं ऐसी इक ग़ज़ल
हाथ में कलम दिल में जज़्बात चाहिए
इंसान की गहराई नाप सके जो "अजनबी"
ऐसा ही इक पैमाना चाहिए
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
16th July, 2000 '105'
16th July, 2000 '105'
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