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Wednesday, July 18, 2012

रहूँ हरदम किताबों के हर सू

पहुँच सकूं मैं मंजिले मक़सूद
बस इतना हौसला चाहिए

रहूँ हरदम किताबों के हर सू
बेपनाह किताबों से मुहब्बत चाहिए

छुए जो दिल को लिखूं ऐसी इक ग़ज़ल
हाथ में कलम दिल में जज़्बात चाहिए

इंसान की गहराई नाप सके जो "अजनबी"
ऐसा ही इक पैमाना चाहिए

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
16th July, 2000 '105'

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