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Thursday, November 24, 2011

यादों के संग रहकर मैं अपना दिन बिताता हूँ

यादों के संग रहकर मैं अपना दिन बिताता हूँ
ख्वाबों में तेरे संग रहकर मैं रात बिताता हूँ

वादे जो किये हैं तुमसे सनम
बस मैं उनको निभाता हूँ

हद से ज्यादा बढ़ जाती है जब तेरी याद
हथेली पे तेरा नाम लिख-लिख कर मिटाता हूँ

अपने तो दिल में लगी है मुहब्बत की आग
फिर भी अपने नगमे सुनाकर औरों का दिल बहलाता हूँ

ग़ज़ल लिखने से भी मिटती हैं कहीं यादें "अजनबी'
तड़पे हुए दिल को मैं और तड़पाता हूँ

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
26th June 2000, '95'

मैं नहीं भुला सकता !

आज कहा सो कहा
अब कभी मत कहना
कि
मैं तुम्हें भूल जाऊं
मैंने तुमसे इज़हार किया है
मैंने तुमसे प्यार किया है
मेरी ज़िन्दगी से बढ़कर हो तुम
मेरी रूह से बढ़कर हो तुम
ख़ुशी में हो तुम
ग़म में हो तुम
हलचल में हो तुम
तन्हाई में हो तुम

तुम्हीं कहो
कैसे भुला दूं तुम्हें
कैसे रुला दूं तुम्हें
तन्हा रातों में तुम्हारा वो
मेरे पास आना
आके फिर तेरा वो
मेरी हथेली को चूमना

कैसे भुला दूं वो लम्हात
लहू से तेरी मांग को सजाना
सजाकर,
मुहब्बत कि कसमें खाना
कैसे भुला दूं, कैसे भुला दूं?
मैं नहीं भुला सकता !

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
22nd June, 2000, '94'

Saturday, November 19, 2011

क्या सुनाऊं यारो तुम्हें ग़ज़ल

क्या सुनाऊं यारो तुम्हें ग़ज़ल
जब मेरी ग़ज़ल ही मेरे पास नहीं

है किसी का ये शायर
है उसी की ये शायरी
क्या सुनाऊं तुम्हें शायरी
जब मेरे पास नहीं मेरी शायरी

ग़ज़ल का हर मिसरा है उसके नाम
मिसरे का हर लफ्ज़ है उसके नाम
मगर अब उसका नाम है किसी और के नाम

अब क्या दिल बहलाऊं यारो तुम्हारा
जब मेरा दिल ही मेरे पास नहीं

क्या सुनाऊं यारो तुम्हें ग़ज़ल
जब मेरी ग़ज़ल ही मेरे पास नहीं

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
23rd June 2000, '93'

Friday, November 18, 2011

ग़म की घटायें छटेंगीं

ग़म की घटायें छटेंगीं
खुशियों के बदल आयेंगे
ऐसे ही इक बरसात में
हम तुम भीग जायेंगे

उठेगी ऐसी इक लहर
गिरा देगी ग़मों देगी सारे शजर
खुशियों के इस दरिया में
हम तुम डूब जायेंगे

आयी है जो खिजां
तो बहारें भी आयेंगीं
इन्हीं बहारों के साए में
हम तुम छिप जायेंगे

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
21st June 2000, '92'

Thursday, November 17, 2011

आज हमें मालूम हुआ

प्यार करने वाले भी
होते हैं प्यार के दुश्मन
आज हमें मालूम हुआ

दर्द को क़रीब से देखा है जिसने
अहसासों का दामन थामा है जिसने
हो भी सकता है प्यार का दुश्मन
आज हमें मालूम हुआ

तड़पा है जो मुहब्बत में
रोई है जिसकी रूह मुहब्बत में
हो भी सकता है मुहब्बत का दुश्मन
आज हमें मालूम हुआ

इश्क़ की कश्ती में रहा नखुदा बनकर
दीवानों के लिए रहा मिसाल बनकर
हो भी सकता है इश्क़ का दुश्मन
आज हमें मालूम हुआ

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
20th June 2000, '91'

Wednesday, November 16, 2011

पैग़ामे वफ़ा

मैंने उसे भेजा था पैग़ामे वफ़ा
उसने समझा है ये कोई बेवफा

खायीं थीं जिसने मुहब्बत की कसमें
भूल गए वो मुहब्बत की रस्में

छूती थीं फलक को जिनकी तमन्नाएँ
क्या हुआ हश्र अब हम क्या सुनाएँ

छोड़ के दामाँ मेरा उनके पहलू में गए
जिनसे हम खफा थे वो उन्हीं के हो गए

"अजनबी" दहर में कोई किसी का नहीं है
है अपना पराया, अपना अपना नहीं है

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
15th June 2000, '90'

Tuesday, November 15, 2011

आ गया फिर जुदाई का मौसम

जा चुकी है कब की खिजां
गया बहारों का मौसम
मेरे ग़म फिर भी नहीं गए
कि गया फिर जुदाई का मौसम

इज़हारे मुहब्बत हुआ ही था
दिल में तमन्नाएँ जगीं ही थीं
हुआ ही था ईजाद ख्वाबों का मौसम
कि गया फिर जुदाई का मौसम

मिले ही थे दो दिल
धड़कना अभी बाकी ही था
छाया ही था प्यार का मौसम
कि गया फिर जुदाई का मौसम

चोरी कि मुहब्बत को चाहा था छिपाना
बाकी था अभी उनका मेरे वादों को निभाना
छा गया ज़माने की दुस्वारी का मौसम
कि गया फिर जुदाई का मौसम

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
23rd Apr. 2000, '89'

Monday, November 14, 2011

प्यार करना चाहता हूँ तुम्हें

प्यार करना चाहता हूँ तुम्हें
सारी दुनिया से छिपाकर
दिल में बसाना चाहता हूँ
हर नज़र से बचाकर

हर घड़ी आँखों से अपनी
देखना चाहता हूँ तुम्हें
अपने प्यार का आँचल उढ़ाकर

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
12nd June 2000, '88'

Sunday, November 13, 2011

लाख मुझे भुलाने की कोशिश करलो

लाख मुझे भुलाने की कोशिश करलो
पर मुझे पल भर भुला पाओगी

जब भी आईने में खुद को निहारोगी
अक्सर मुझे और मुझे ही पाओगी

शाम की तन्हाई में होगी जब तन्हा
अपने को मेरे ख्यालों के रूबरू पाओगी

मुश्किल में होगा जब तुम्हारा दिल
मेरे नग़मों से अपना दिल बहलाओगी

रोक सको रोको ख्वाबों में मुझे
तन्हा रातों में "अजनबी" को जुरूर पाओगी

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
7th June 2000, '87'

तारों के झिलमिलाने से

तारों के झिलमिलाने से, चाँद के मुस्कुराने से
हमें उनकी मुस्कराहट याद आई

देखा जब मैंने चाँद को अपनी आँखों से
तो मुझे वो ही नज़र आयी

खो गया जब मैं ऐसे नज़ारे में
दिल में यादों की घटा छाई

किसी शायर की है वो शायरी
मेरे दिल में जो प्यार बनके आई

टूट जाएँ सारी हदें मिल जाएँ दो दिल
हो जाये दूर फिर ये तन्हाई

कितना खुशकिस्मत है तू "अजनबी"
जो तूने इतनी प्यारी महबूबा पाई

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
15th Dec. 1999 '86'

Friday, November 11, 2011

अश्कों की झड़ी होगी

ज़िन्दगी तू बड़ी बेवफा है
इक इक दिन मुझे छोड़ देगी

अरमां हमारे कफ़न ओढ़ लेंगे
तमन्नाएँ भी दिल में रहेंगी
वो घड़ी कितनी बदनसीब होगी

दिल रोयेगा और अश्कों की झड़ी होगी
आने जाने की हलचल सी मची होगी

चाहेंगे लिपट के रो लें किसी से हम
उस वक़्त अपनों की कमी होगी

क्यों कल के ताने बाने बुनता है "अजनबी"
वो घड़ी भी अपनी हमसफ़र होगी

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
12nd Dec. 1999, '85'

Thursday, November 10, 2011

मैं होता हूँ और मेरा जाँनिसार होता है

शाम हंसी करने लिए
सोचता हूँ मैं ख्याल तेरा
आते ही ख़याल तेरा
दूर हो जाते हैं दिन के ग़म
और आती है ख्सुहियाँ लिए
इक प्यारी रात

जिसमें होती है तू और मैं
और दो दिलों की धड़कन
चांदनी का आँगन होता है
सितारों का आँचल होता है
हवाओं का प्यार होता है
शबनम का इज़हार होता है

मैं होता हूँ और मेरा जाँनिसार होता है
ख्वाबों की है ये दुनिया
ख्वाबों के हैं ये महल
मैं होता हूँ और मेरा प्यार होता है

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
5th Nov. 1999, '84'

Wednesday, November 09, 2011

बिन तुम्हारे- बिन तुम्हारे

हवा
जाकर जरा
उन्हें बता
बुलाता है तुम्हें कोई शायर
अधूरी है उसकी ग़ज़ल
नहीं है पूरी कोई नज़्म
बिन तुम्हारे- बिन तुम्हारे

चाँद
जाकर जरा
उन्हें बता
जल रहा है मुहब्बत की तपिश में
डूब रहा है प्यार की कश्ती में
नहीं मिलेगा उसे कोई साहिल
बिन तुम्हारे- बिन तुम्हारे

नज़ारे
जाकर जरा
उन्हें बता
मचल रहा है तुमसे मिलने को
तड़प रहा है तुम्हें देखने को
थम जाएँगी उसकी साँसें
बिन तुम्हारे- बिन तुम्हारे

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
15th Dec. 1999, '83'

Tuesday, November 08, 2011

दो दिल बिछड़ रहे हैं यहाँ

दो दिल बिछड़ रहे हैं यहाँ
किसी को ख़बर भी नहीं है
दो दिल मचल रहे हैं यहाँ
किसी को ख़बर भी नहीं है

मिले थे जब हम दोनों तो
होश था इस दुनिया को
जुदा हो रहे हैं आज हम तो
किसी को ख़बर भी नहीं है

मिलते थे जब हम तो
जलता था ये ज़माना
आज टूटा है मेरा फ़साना तो
किसी को ख़बर भी नहीं है

दो दिल तड़प रहे हैं यहाँ
किसी को ख़बर भी नहीं है

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
23rd Apr. 2000, '82'

Monday, November 07, 2011

ऐ साकी

ऐ साक़ी इतनी पिला दे मुझे आज
बाकी और प्यास न रहे

भूल जाऊं सारी दुनिया
कोई और होश न रहे

कुछ ऐसा नशा आ जाये मुझे
किसी और का इंतज़ार न रहे

फूलों से भर जाये मेरी ज़िन्दगी
बस अब इक भी खार न रहे

चाह है जिसे तूने "अजनबी"
उसके पास कोई ग़म न रहे

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
1st June 2000, '81'

Sunday, November 06, 2011

जिसे अपनी ज़िन्दगी बनाने चले थे

जिसे अपनी ज़िन्दगी बनाने चले थे
उसी से जुदा हो के चले हैं

खुशियों को दामन में समेट कर लाये थे
अश्कों की बरसात में भीग कर चले हैं

मुहब्बत की तिश्नगी में तबाह हुए
फिर भी यादों को छिपाकर चले हैं

आज उनका सेहरा फूलों से महका है
मेरी ज़िन्दगी में कांटे बो कर चले हैं

क्यों नाराज़ होता है उससे "अजनबी"
कुछ तो सोचकर बेवफाई करने चले हैं

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
30th May, 2000

Saturday, November 05, 2011

कुछ अशआर -6

1. दूर मुझसे रहके तड़पाते हैं वो
पास जब हों उनके तो
क़रीब आने में इतराते हैं वो
अब क्या करूँ ऐसा मैं वो
कि बाँहों मेरी जाएँ वो

2. मैं बारहा गुजरता हूँ उनकी गली से
दिल में ये हसरत लिए
कभी तो होगा दीदार उनका

3. होती है जो शाम
तो आता है सवेरा
होता है सिर्फ
इक रात का फेरा

4. जो नहीं है नशा सौ बोतल का
वो तेरी आँखों में है
जो गुलाब को होठों से लगाने में नहीं
वो तेरे होठों को अपने होठों से लगाने में है

5. तुम कहती रहो
मैं सुनता रहूँ
तुम बैठी रहो
मैं देखता रहूँ

6. होगा बस मान ही मान
बन जाओगे तुम सबकी शान
, अपने मामा की जान
कैसे हो प्यारे रिज़वान

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी"
24th May , 2000

Friday, November 04, 2011

कुछ अशआर- 5

1.मेरे दिल में है इक दर्द
है मलहम जिसकी तू

2. हमें मिटाने वाले मिट जायेंगे
हम तो सितारा बनकर दुनिया को चमकाएंगे

3. तन्हा होते हुए भी तन्हा नहीं
तेरी यादों के साथ हूँ तेरे साथ नहीं

4. कह दो मन के मीत से मन की बात
कहीं मन में ही रह जाये

5. इश्क़ को कब कौन रोक पाया है
हर किसी ने हर किसी से इसे जुदा पाया है
मिटाने की कोशिश की है जिसने इसे
खुद को उसने फना पाया है

6. मुहब्बत से जोड़ा है जो नाता
तो दामन छुड़ा सकता नहीं
जाँ लुटा सकता हूँ मगर
कदम हटा सकता नहीं

7. मैं वो परिंदा नहीं
जो उड़कर चला जाऊंगा
दिल में जो बैठा हूँ
तो उड़ाकर ही ले जाऊंगा

8.दिल के क़रीब, मन के पास
यादों के आईने में रहने वाले

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
24th May, 2000