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Wednesday, October 19, 2011

बांहों की गोलाईयाँ थीं

चम- चम चमकता चाँद था
सितारों की झीमी रौशनी थी
हवाओं के झोंके भी थे
मौसम भी खुशगवार था
ऐसे में, मैंने उसकी मांग को सजाया था

दिल में धड़कन थी
मन में लगन थी
होठों पे हंसी थी
चेहरे पे ख़ुशी थी
ऐसे में, मैंने उसकी मांग को सजाया था

बांहों की गोलाईयाँ थीं
आँचल की परछाईयाँ थीं
हम दोनों की साँसें थीं
हम दोनों की आहें थीं
ऐसे में, मैंने उसकी मांग को सजाया था

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी"
18th Apr., 2000 '79'

Sunday, October 16, 2011

तो कम है

गर मैं तुझे अरमान कहूँ
तो कम है

गर मैं तुझे अपनी पहचान कहूँ
तो कम है

गर मैं तुझे अपना मन कहूँ
तो कम है

गर मैं तुझे धड़कते हुए दिल की धड़कन कहूँ
तो कम है

गर मैं तुझे अपनी ख़ुशी कहूँ
तो कम है

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
14th May, 2000, '78'

Wednesday, October 12, 2011

तेरी चूड़ियाँ

खनकती होंगी तेरी चूड़ियाँ, खनकते होंगे तेरे कंगन
लेकिन तेरे पास नहीं तेरा साजन
बजती होगी तेरी पायल, बोलती होगी तेरी बिंदिया
लाख बुलाने पर नहीं आती होगी तुझे निंदिया

मेरी यादों को सोचते होगे
मेरी बातों को सोचते होगे
तन्हाईयों में छिपकर
मुझसे बातें करते होगे

जल्दी ही होगा दूर अब ये इंतज़ार
फूल ही फूल होंगे, नहीं होगा इक भी खार
जब भी तूने अपनी मांग को सजाया होगा
मेरा चेहरा जरूर तेरे सामने आया होगा

सारी दुनिया के सामने
इक दिन मैं आऊंगा
तुमसे ही तुमको चुराकर
डोली में बिठाकर ले जाऊंगा

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी'
18th Apr. 2000, '77'