चम- चम चमकता चाँद था
सितारों की झीमी रौशनी थी
हवाओं के झोंके भी थे
मौसम भी खुशगवार था
ऐसे में, मैंने उसकी मांग को सजाया था
दिल में धड़कन थी
मन में लगन थी
होठों पे हंसी थी
चेहरे पे ख़ुशी थी
ऐसे में, मैंने उसकी मांग को सजाया था
बांहों की गोलाईयाँ थीं
आँचल की परछाईयाँ थीं
हम दोनों की साँसें थीं
हम दोनों की आहें थीं
ऐसे में, मैंने उसकी मांग को सजाया था
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी"
18th Apr., 2000 '79'
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Wednesday, October 19, 2011
Sunday, October 16, 2011
तो कम है
गर मैं तुझे अरमान कहूँ
तो कम है
गर मैं तुझे अपना मन कहूँ
तो कम है
गर मैं तुझे धड़कते हुए दिल की धड़कन कहूँ
तो कम है
गर मैं तुझे अपनी ख़ुशी कहूँ
तो कम है
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
14th May, 2000, '78'
तो कम है
गर मैं तुझे अपनी पहचान कहूँ तो कम है
गर मैं तुझे अपना मन कहूँ
तो कम है
गर मैं तुझे धड़कते हुए दिल की धड़कन कहूँ
तो कम है
गर मैं तुझे अपनी ख़ुशी कहूँ
तो कम है
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
14th May, 2000, '78'
Wednesday, October 12, 2011
तेरी चूड़ियाँ
खनकती होंगी तेरी चूड़ियाँ, खनकते होंगे तेरे कंगन
लेकिन तेरे पास नहीं तेरा साजन
बजती होगी तेरी पायल, बोलती होगी तेरी बिंदिया
लाख बुलाने पर नहीं आती होगी तुझे निंदिया
जल्दी ही होगा दूर अब ये इंतज़ार
फूल ही फूल होंगे, नहीं होगा इक भी खार
जब भी तूने अपनी मांग को सजाया होगा
मेरा चेहरा जरूर तेरे सामने आया होगा
लेकिन तेरे पास नहीं तेरा साजन
बजती होगी तेरी पायल, बोलती होगी तेरी बिंदिया
लाख बुलाने पर नहीं आती होगी तुझे निंदिया
मेरी यादों को सोचते होगे
मेरी बातों को सोचते होगे
तन्हाईयों में छिपकर
मुझसे बातें करते होगे
मेरी बातों को सोचते होगे
तन्हाईयों में छिपकर
मुझसे बातें करते होगे
जल्दी ही होगा दूर अब ये इंतज़ार
फूल ही फूल होंगे, नहीं होगा इक भी खार
जब भी तूने अपनी मांग को सजाया होगा
मेरा चेहरा जरूर तेरे सामने आया होगा
सारी दुनिया के सामने
इक दिन मैं आऊंगा
तुमसे ही तुमको चुराकर
डोली में बिठाकर ले जाऊंगा
इक दिन मैं आऊंगा
तुमसे ही तुमको चुराकर
डोली में बिठाकर ले जाऊंगा
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी'
18th Apr. 2000, '77'
18th Apr. 2000, '77'
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