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Wednesday, September 14, 2011

जब से प्यार हुआ है तुमसे

जब से प्यार हुआ है तुमसे
नहीं लगता दिल, दुनिया से
भूल गया मैं ये दुनिया
भूल गया मैं ये जहां

मेरी दुनिया बस तुम हो
मेरा जहाँ बस तुम हो
मेरी हर तमन्ना तुम हो
मेरी हर ख़ुशी तुम हो

जब से प्यार हुआ तुमसे
नहीं लगता दिल बहारों से

मेरी हर बहार तुम हो
मेरा हर चमन तुम हो
कली का खिलना तुम हो
फूलों का मुस्कुराना तुम हो

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

18th Apr. 2000, '76'

Monday, September 12, 2011

शायद तुम में नहीं..

है मुझमें वो जूनून तुम्हें पाने का
है मुझमें वो पागलपन तुम्हें पाने का
शायद तुम में नहीं..

है वो लगन तुमसे मिलने की
है वो आरज़ू तुम्हें देखने की
शायद तुम में नहीं ..

है पता वो आहट तुम्हारे आने की
है पता वो तरीका तुम्हारे जाने का
शायद तुम में नहीं..

है दर्द मेरे सीने में
है रुकावटमेरे जीने में
शायद तुम में नहीं..

है वो अहसास तुम्हारी चाहत का
है वो सावन तुम्हारे प्यार का
शायद तुम में नहीं..

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

15th Apr. 2000 '75'

Friday, September 09, 2011

हवाओं से मेरा पता पूछते हैं

वो रोते  हैं मेरे लिए 
मैं रोता हूँ उनके लिए
वो जीते हैं मेरे लिए 
मैं मरता हूँ उनके लिए
दोनों बने हैं बस प्यार के लिए 

खाईं हैं उसने कसमें 
किये हैं हमने वादे 
साथ निभाने के लिए
आँखों ही आँखों में मुझे बुला के 
फिर खुद दूर चले जाते हैं 
मेरी बेक़रारी बढाने के लिए

छत पर तन्हा बैठ कर 
चाँद को निहारते हैं
हवाओं से मेरा पता पूछते हैं
 मुझे देखने के लिए 

दुनिया से दूर होकर  
तन्हाईयों में बैठते हैं और 
सन्नाटों से प्यार करते हैं
मुझे सोचने के लिए

-  मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'74'  18th Apr. 2000

Sunday, September 04, 2011

कब झूमेंगी खुशियाँ तुम पर

कब होंगी दूर ग़म की घटायें
कब छटेंगे जुदाई के बादल

कब गिरेंगे फूल हम पर
कब झूमेंगी खुशियाँ तुम पर

बाँहों में होंगे तुम तुम्हारे
दिल में होंगे हम तुम्हारे

ऐसा भी शमन आएगा
बस इंतज़ार कराएगा

इंतज़ार करें और कब तक
पहुंचा दो पयाम ये उन तक

नहीं सही जाती अब ये जुदाई
नहीं सहा जाता अब ये दर्द

कह दो उनसे "अजनबी"
यही है मेरे प्यार का दर्द

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

'73' 12nd Apr. 2000

अश्कों को न बहाया करो

इस तरह मुझे देखकर न तुम मुस्कुराया करो  
लाख मजबूरियां सही बस तुम आ जाया करो

यूँ तो कटने को कट जाएगी ये ज़िन्दगी  
लेकिन  इतना मुझे न तुम सताया करो  

सोचता हूँ रहूँ हर दम तेरी बाँहों में  
अरे इस पागल को कभी तो समझाया करो  

बहुत कीमती है तुम्हारी आँखों का पानी  
इस तरह इन अश्कों को न बहाया करो  

अपनी ज़िन्दगी को ऐ "अजनबी"  
इतना मत रुलाया करो - रुलाया करो  

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

'72'  3rd May, 2000

Friday, September 02, 2011

अक्सर तन्हाईयों में

प्यार करके आदमी
चैने दिल के बदले
दर्दे दिल ले लेता है
याद जब आती है अपने यार की
अपने ही अश्कों में वो
उसका अक्स ढूँढ लेता है

जुस्तुजू में उसकी
चाँद पर पहुँचता है
ऐसे लम्हात को वो
अपने दिल में क़ैद कर लेता है

अक्सर तन्हाईयों में
कभी रोता है वो
कभी हँसता है
यादों से ही उसकी
अपने दिल को बहला लेता है

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

'71' 17th Feb. 2000

Thursday, September 01, 2011

इस दिल में है दर्द इतना

इस दिल में है दर्द इतना
छुपाये से छुपता नहीं

लाख अश्कों को समेंटें हैं हम
मगर रोके से रुकते नहीं

भर गया है अब दर्द का प्याला
अब और उसमें दर्द समाता नहीं

जाओ, बस जाओ अब तुम
इंतज़ार के लिए अब और ये थमता नहीं

चाहत के दर्द में है अब "अजनबी"
जब तक की तुम नहीं - तुम नहीं

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी

'70' 11st Feb. 2000