जा रही हो न
मुझे छोड़कर
तुम्हें तुम्हारा सुहाग रखे खुश इतना
न कर पाओ तुम उसे जितना
पर मुझे न भूल जाना
हमेशा याद रखना - याद रखना
लेकिन इक दायरे के अन्दर
खुशियों से नाता जोड़ना
ग़मों से मुंह मोड़ना
अपने लिए - मेरे लिए
अपने उसके लिए
जो तुम्हारी ज़िन्दगी की
अगली किरण है
हाँ- हाँ
भूल के सारे गिले शिकवे
दिल से लगाना मेरी मुबारकबाद
शुरू करो
इक नयी ज़िन्दगी
अपने जीवन साथी के साथ।
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
24th June, 1999, '41'
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Wednesday, June 15, 2011
Friday, June 10, 2011
मैं जहाँ भी हूँ
न हँसना मेरी ज़िन्दगी पे यारो
गर न मिले मुझे मेरी मंजिल
कोशिश तो कर रहा हूँ पूरी
फिर भी कोई चीज रह जाये अधूरी
तो कर भी क्या सकता हूँ
न जी सकता हूँ न मर सकता हूँ
हंसके तुमको नहीं मिलेगा कुछ
पर मेरा दिल कहेगा बहुत कुछ
इसीलिए तो कह रहा हूँ यार
न करना ऐसा एक भी बार
उस वक़्त मैं जहाँ भी हूँ
समझ लेना यही है "शाहिद" की मंजिल
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
30th June, 1999, '40'
गर न मिले मुझे मेरी मंजिल
कोशिश तो कर रहा हूँ पूरी
फिर भी कोई चीज रह जाये अधूरी
तो कर भी क्या सकता हूँ
न जी सकता हूँ न मर सकता हूँ
हंसके तुमको नहीं मिलेगा कुछ
पर मेरा दिल कहेगा बहुत कुछ
इसीलिए तो कह रहा हूँ यार
न करना ऐसा एक भी बार
उस वक़्त मैं जहाँ भी हूँ
समझ लेना यही है "शाहिद" की मंजिल
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
30th June, 1999, '40'
Monday, June 06, 2011
मैं बताऊँ कैसे
मैंने तेरी याद में कितने बहाए अश्क
उन अश्कों को गिनाऊं कैसे
मैं तुम्हें करता हूँ याद कैसे
वो अदा मैं तुम्हें बताऊँ कैसे
दूर तुमसे रह के दिन बिताता हूँ कैसे
ये तुम्हें समझाऊं कैसे
कब तुमसे करता हूँ मैं प्यार
वो वक़्त मैं बताऊँ कैसे
जुदाई मैं जब करता है मेरा दिल तुम्हें याद
वो दिल की थकन मैं बताऊँ कैसे
तुम्हें चाहता हूँ देखना किस रूप में
वो रूप मैं बताऊँ कैसे
मेरा मन तुमसे मिलने को कर रहा है कितना
इस बात को तुम तक मैं पहुंचाऊं कैसे
जब भी देखता हूँ मैं चाँद में तुम्हें
वो चाँद की मुस्कराहट मैं बताऊँ कैसे
दिल के करीब हो के, फिर भी तुमसे दूर
आज "अजनबी' को मैं बताऊँ कैसे
उन अश्कों को गिनाऊं कैसे
मैं तुम्हें करता हूँ याद कैसे
वो अदा मैं तुम्हें बताऊँ कैसे
दूर तुमसे रह के दिन बिताता हूँ कैसे
ये तुम्हें समझाऊं कैसे
कब तुमसे करता हूँ मैं प्यार
वो वक़्त मैं बताऊँ कैसे
जुदाई मैं जब करता है मेरा दिल तुम्हें याद
वो दिल की थकन मैं बताऊँ कैसे
तुम्हें चाहता हूँ देखना किस रूप में
वो रूप मैं बताऊँ कैसे
मेरा मन तुमसे मिलने को कर रहा है कितना
इस बात को तुम तक मैं पहुंचाऊं कैसे
जब भी देखता हूँ मैं चाँद में तुम्हें
वो चाँद की मुस्कराहट मैं बताऊँ कैसे
दिल के करीब हो के, फिर भी तुमसे दूर
आज "अजनबी' को मैं बताऊँ कैसे
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
5th June, 1999, '39'
5th June, 1999, '39'
Friday, June 03, 2011
रूठने न देना
न मिलते अगर तुम
ज़िन्दगी के सफ़र में
तो शायद मैं रहता अधूरा
आज दिल ये कह रहा है
थोड़ा सा हँस के थोड़ा सा रोके
की शायद तुम्हारा साथ पके
मैं हो गया हूँ पूरा
लेकिन
मेरा बस यही है कहना
जो ग़म आये ख़ुशी से सहना
अपने प्यार के लिए
इस बंधन को टूटने न देना
इस प्यार को रूठने न देना
अपने को
इस जहां से बचाए रखना
सारी दुनिया से नज़रें छिपाए रखना
ज़िन्दगी के सफ़र में
तो शायद मैं रहता अधूरा
आज दिल ये कह रहा है
थोड़ा सा हँस के थोड़ा सा रोके
की शायद तुम्हारा साथ पके
मैं हो गया हूँ पूरा
लेकिन
मेरा बस यही है कहना
जो ग़म आये ख़ुशी से सहना
अपने प्यार के लिए
इस बंधन को टूटने न देना
इस प्यार को रूठने न देना
अपने को
इस जहां से बचाए रखना
सारी दुनिया से नज़रें छिपाए रखना
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
1st June, 1999 '38'
1st June, 1999 '38'
Wednesday, June 01, 2011
वो मेरे पास नहीं
लोग समझते हैं कि मैं खुश हूँ
कितने हैं मेरे पास ग़म
नहीं मालूम है ये
इस जालिम दुनिया को
गर मेरे पास ख़ुशी है एक
तो ग़म हैं कई गुना ज्यादा
होंठ जब हँसते हैं
तब दिल रोता है
एक पल के लिए सोचता है
क्या वो मुझे मिल पायेगी ?
क्या वो मेरा साथ निभा पायेगी?
क्या वो अपना हाथ मेरे हाथ में दे पायेगी?
क्या वो मुझसे जुदा होकर खुश रह पायेगी?
अक्सर सोचता हूँ मैं ये
जब भी होती है मेरे पास तन्हाई
दुनिया से ग़म बचाने पड़ते हैं
लाख दिल करे हाले दिल सुनाने को
फिर भी सारे ग़म छिपाने पड़ते हैं
अब तो
हर ख़ुशी मेरा ग़म है
हर हंसी मेरा ग़म है
जब तक कि
वो मेरे पास नहीं
वो मेरे पास नहीं !!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
1st June, 1999, '37'
कितने हैं मेरे पास ग़म
नहीं मालूम है ये
इस जालिम दुनिया को
गर मेरे पास ख़ुशी है एक
तो ग़म हैं कई गुना ज्यादा
होंठ जब हँसते हैं
तब दिल रोता है
एक पल के लिए सोचता है
क्या वो मुझे मिल पायेगी ?
क्या वो मेरा साथ निभा पायेगी?
क्या वो अपना हाथ मेरे हाथ में दे पायेगी?
क्या वो मुझसे जुदा होकर खुश रह पायेगी?
अक्सर सोचता हूँ मैं ये
जब भी होती है मेरे पास तन्हाई
दुनिया से ग़म बचाने पड़ते हैं
लाख दिल करे हाले दिल सुनाने को
फिर भी सारे ग़म छिपाने पड़ते हैं
अब तो
हर ख़ुशी मेरा ग़म है
हर हंसी मेरा ग़म है
जब तक कि
वो मेरे पास नहीं
वो मेरे पास नहीं !!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
1st June, 1999, '37'
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