Followers

Wednesday, June 15, 2011

इक नयी ज़िन्दगी

जा रही हो
मुझे छोड़कर
तुम्हें तुम्हारा सुहाग रखे खुश इतना
कर पाओ तुम उसे जितना
पर मुझे भूल जाना
हमेशा याद रखना - याद रखना

लेकिन इक दायरे के अन्दर
खुशियों से नाता जोड़ना
ग़मों से मुंह मोड़ना
अपने लिए - मेरे लिए

अपने उसके लिए
जो तुम्हारी ज़िन्दगी की
अगली किरण है

हाँ- हाँ
भूल के सारे गिले शिकवे
दिल से लगाना मेरी मुबारकबाद
शुरू करो
इक नयी ज़िन्दगी
अपने जीवन साथी के साथ

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

24th June, 1999, '41'

Friday, June 10, 2011

मैं जहाँ भी हूँ

हँसना मेरी ज़िन्दगी पे यारो
गर मिले मुझे मेरी मंजिल

कोशिश तो कर रहा हूँ पूरी
फिर भी कोई चीज रह जाये अधूरी

तो कर भी क्या सकता हूँ
जी सकता हूँ मर सकता हूँ

हंसके तुमको नहीं मिलेगा कुछ
पर मेरा दिल कहेगा बहुत कुछ

इसीलिए तो कह रहा हूँ यार
करना ऐसा एक भी बार

उस वक़्त मैं जहाँ भी हूँ
समझ लेना यही है "शाहिद" की मंजिल

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

30th June, 1999, '40'

Monday, June 06, 2011

मैं बताऊँ कैसे

मैंने तेरी याद में कितने बहाए अश्क
उन अश्कों को गिनाऊं कैसे

मैं तुम्हें करता हूँ याद कैसे
वो अदा मैं तुम्हें बताऊँ कैसे

दूर तुमसे रह के दिन बिताता हूँ कैसे
ये तुम्हें समझाऊं कैसे

कब तुमसे करता हूँ मैं प्यार
वो वक़्त मैं बताऊँ कैसे

जुदाई मैं जब करता है मेरा दिल तुम्हें याद
वो दिल की थकन मैं बताऊँ कैसे

तुम्हें चाहता हूँ देखना किस रूप में
वो रूप मैं बताऊँ कैसे

मेरा मन तुमसे मिलने को कर रहा है कितना
इस बात को तुम तक मैं पहुंचाऊं कैसे

जब भी देखता हूँ मैं चाँद में तुम्हें
वो चाँद की मुस्कराहट मैं बताऊँ कैसे

दिल के करीब हो के, फिर भी तुमसे दूर
आज "अजनबी' को मैं बताऊँ कैसे

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

5th June, 1999, '39'

Friday, June 03, 2011

रूठने न देना

मिलते अगर तुम
ज़िन्दगी के सफ़र में
तो शायद मैं रहता अधूरा
आज दिल ये कह रहा है
थोड़ा सा हँस के थोड़ा सा रोके
की शायद तुम्हारा साथ पके
मैं हो गया हूँ पूरा

लेकिन
मेरा बस यही है कहना
जो ग़म आये ख़ुशी से सहना
अपने प्यार के लिए
इस बंधन को टूटने देना
इस प्यार को रूठने देना
अपने को
इस जहां से बचाए रखना
सारी दुनिया से नज़रें छिपाए रखना

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'

1st June, 1999 '38'

Wednesday, June 01, 2011

वो मेरे पास नहीं

लोग समझते हैं कि मैं खुश हूँ
कितने हैं मेरे पास ग़म
नहीं मालूम है ये
इस जालिम दुनिया को
गर मेरे पास ख़ुशी है एक
तो ग़म हैं कई गुना ज्यादा

होंठ जब हँसते हैं
तब दिल रोता है
एक पल के लिए सोचता है

क्या वो मुझे मिल पायेगी ?
क्या वो मेरा साथ निभा पायेगी?
क्या वो अपना हाथ मेरे हाथ में दे पायेगी?
क्या वो मुझसे जुदा होकर खुश रह पायेगी?

अक्सर सोचता हूँ मैं ये
जब भी होती है मेरे पास तन्हाई
दुनिया से ग़म बचाने पड़ते हैं
लाख दिल करे हाले दिल सुनाने को
फिर भी सारे ग़म छिपाने पड़ते हैं

अब तो
हर ख़ुशी मेरा ग़म है
हर हंसी मेरा ग़म है
जब तक कि
वो मेरे पास नहीं
वो मेरे पास नहीं !!

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

1st June, 1999, '37'