डर है कहीं पड़ न जाये कम ये ज़िंदगी
तुमसे प्यार के लिए
तुमसे दिल की बातें कहने के लिए
तुम्हें बांहों में भरने के लिए
तुम्हें जी भर के देखने के लिए
तेरी मांग अपने प्यार से भरने के लिए
तेरे पल्लू में तारे टांकने के लिए
तुझे कंगन पहनाने के लिए
तुझे चाहने के लिए
क्योंकि
मैं तुम्हें प्यार करना चाहता हूँ इतना
न किया हो किसी ने किसी को इतना
आज रब से दुआ मांग रहा हूँ
बस इतनी ज़िंदगी दे दे मुझे
जी भर के प्यार कर सकूँ तुझे
ऐ मेरे यादों के आईने में रहने वाले
क्या तुम भी चाहते हो इतना प्यार जताना
सच बताना- सच बताना - सच बताना
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'36' 1st June, 1999
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Tuesday, May 31, 2011
Monday, May 30, 2011
वो सुकूँ
शायद न पा सकेगी तू वो सुकूँ
जो मिलता था तुझे मेरी बांहों में
लगाएगा जब भी वो तुम्हें अपने सीने से
महसूस करेगी तू इक उलझन
पर,
तू न हाँ कर सकती , न न कर सकती
आखिर तू कर भी क्या सकती
क्योंकि
वो तुम्हारा सुहाग है
तुम्हारी ज़िन्दगी का मालिक है
ऐसे हालातों में
अक्सर याद आएगी तुझे मेरी
दिल रोयेगा और आँख भर आएगी
अश्क भी बहने लगेंगे
पर,
कसम है तुझे अपने प्यार की
आंसुओं को निकलने न देना
दिल को रोने न देना
अपने प्यार के लिए
एक घूँट समझकर
हँस के पी लेना
क्योंकि
कुछ लोग यहाँ
सहने के लिए ही हैं!!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'35' 31st May, 1999
जो मिलता था तुझे मेरी बांहों में
लगाएगा जब भी वो तुम्हें अपने सीने से
महसूस करेगी तू इक उलझन
पर,
तू न हाँ कर सकती , न न कर सकती
आखिर तू कर भी क्या सकती
क्योंकि
वो तुम्हारा सुहाग है
तुम्हारी ज़िन्दगी का मालिक है
ऐसे हालातों में
अक्सर याद आएगी तुझे मेरी
दिल रोयेगा और आँख भर आएगी
अश्क भी बहने लगेंगे
पर,
कसम है तुझे अपने प्यार की
आंसुओं को निकलने न देना
दिल को रोने न देना
अपने प्यार के लिए
एक घूँट समझकर
हँस के पी लेना
क्योंकि
कुछ लोग यहाँ
सहने के लिए ही हैं!!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'35' 31st May, 1999
Sunday, May 29, 2011
अधूरा ख्वाब
देखे थे जो सपने
वो अधूरे रह गए
मन में छाई थीं कुछ कल्पनाएँ
वो भी पूरी न हुयीं
देखा जब मैंने उस चौखट से
जिस पर बैठा था मैं
न जाने कब से
तुमने मेरा दिल तोड़ दिया
मुझे ग़मों के संग
फिर छोड़ दिया
खुशियाँ फिर रूठ गयीं
मुझसे दूर -दूर हो गयीं
काश तुम मेरे पास होती
तो मेरे पास
लाख खुशियाँ होती
पर
सोचने से अब होगा क्या
आ जाओगी तुम क्या
शायद नहीं शायद नहीं
मेरी किस्मत ही ऐसी है
जो इस वक़्त
मैं बिलकुल अकेला हूँ!!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'34' 24th May, 1999
वो अधूरे रह गए
मन में छाई थीं कुछ कल्पनाएँ
वो भी पूरी न हुयीं
देखा जब मैंने उस चौखट से
जिस पर बैठा था मैं
न जाने कब से
तुमने मेरा दिल तोड़ दिया
मुझे ग़मों के संग
फिर छोड़ दिया
खुशियाँ फिर रूठ गयीं
मुझसे दूर -दूर हो गयीं
काश तुम मेरे पास होती
तो मेरे पास
लाख खुशियाँ होती
पर
सोचने से अब होगा क्या
आ जाओगी तुम क्या
शायद नहीं शायद नहीं
मेरी किस्मत ही ऐसी है
जो इस वक़्त
मैं बिलकुल अकेला हूँ!!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'34' 24th May, 1999
Friday, May 27, 2011
महबूब आने वाला है
राह देख रहा हूँ मैं तेरी
न जाने कब से
बैठा हूँ आज चौखट पर
पलकें बिछाए हुए
दिल को समझाए हुए
कि
आज मेरा महबूब आने वाला है
न जाने कितनी बार आया हूँ
उस दरवाज़े पर
जहाँ से तुम्हारा दीदार करना है
दिल में बिठाना है
आँखों पे सजाना है
कभी गली देखता हूँ
कभी चौराहा देखता हूँ
लगता है मानो तुम आ रहे हो
इंतज़ार कि घड़ियाँ और
दिल की दूरियां दूर करो
बस
हर ग़म को आज
ख़ुशी में बदल दो
मैं सिर्फ इतना जानता हूँ
कि मैं तुम्हें चाहता हूँ
सारी दुनिया को बताना चाहता हूँ
कि
आज मेरा महबूब
मेरी ज़िन्दगी का मालिक
आने वाला है !!!!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी'
'33' 24th May, 1999
न जाने कब से
बैठा हूँ आज चौखट पर
पलकें बिछाए हुए
दिल को समझाए हुए
कि
आज मेरा महबूब आने वाला है
न जाने कितनी बार आया हूँ
उस दरवाज़े पर
जहाँ से तुम्हारा दीदार करना है
दिल में बिठाना है
आँखों पे सजाना है
कभी गली देखता हूँ
कभी चौराहा देखता हूँ
लगता है मानो तुम आ रहे हो
इंतज़ार कि घड़ियाँ और
दिल की दूरियां दूर करो
बस
हर ग़म को आज
ख़ुशी में बदल दो
मैं सिर्फ इतना जानता हूँ
कि मैं तुम्हें चाहता हूँ
सारी दुनिया को बताना चाहता हूँ
कि
आज मेरा महबूब
मेरी ज़िन्दगी का मालिक
आने वाला है !!!!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी'
'33' 24th May, 1999
Thursday, May 26, 2011
कैसे करूँ तारीफ तेरी
नहीं हैं मेरे पास वो शब्द
जो कर सकें तारीफ तेरी
कहाँ से लाऊं वो शब्द
जो कर सकें तारीफ तेरी
किसके रूबरू करूँ तुझे
नहीं आ रहा है समझ में मुझे
इस दुनिया में
नहीं है कुछ ऐसा
जिसे मान सकूँ कि
ये है तेरे जैसा
तुम हो सबसे जुदा सबसे अलग
मैं जो कहना चाहता हूँ
तुम वो सुनना चाहती हो
मैंने वो कह दिया
तूने भी सुन लिया
बस यही हैं वो शब्द
जो कर रहे हैं तारीफ तेरी
"अजनबी" सोच रहा है आज
कैसे करूँ तारीफ तेरी
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'32' 1st June, 1999
जो कर सकें तारीफ तेरी
कहाँ से लाऊं वो शब्द
जो कर सकें तारीफ तेरी
किसके रूबरू करूँ तुझे
नहीं आ रहा है समझ में मुझे
इस दुनिया में
नहीं है कुछ ऐसा
जिसे मान सकूँ कि
ये है तेरे जैसा
तुम हो सबसे जुदा सबसे अलग
मैं जो कहना चाहता हूँ
तुम वो सुनना चाहती हो
मैंने वो कह दिया
तूने भी सुन लिया
बस यही हैं वो शब्द
जो कर रहे हैं तारीफ तेरी
"अजनबी" सोच रहा है आज
कैसे करूँ तारीफ तेरी
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'32' 1st June, 1999
Monday, May 23, 2011
हाँ -हाँ मुझे याद है
हाँ -हाँ मुझे याद है
वो तेरा प्यार भरा
पहला चुम्बन
जबकि
हाथ तुम्हारे काँप राहे थे
चेहरा सफ़ेद हो रहा था
होंठ ही थरथरा रहे थे
फिर भी
तुमने अपने होठों को मेरे
होठों पर रख दिया था
और मैं
देखता रह गया था
यही था
तुम्हारे पहले प्यार का
पहला इज़हार है
तुमने अपनी बाँहों में मुझे भर लिया था
अपने सीने से लगा लिया था
मैं अवाक् सा रह गया था
धड़कन मेरी बढ़ रही थी
मन कुछ कह रहा था
दिल भी कुछ कहना चाहता था
पर तुमने
एक न सुनी थी
और मुझे इतना प्यार किया
कि आज वो प्यार
दिल में ग़म बनकर
चुभ रहा है
हाँ -हाँ मुझे याद है।
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'31' 18th May, 1999
वो तेरा प्यार भरा
पहला चुम्बन
जबकि
हाथ तुम्हारे काँप राहे थे
चेहरा सफ़ेद हो रहा था
होंठ ही थरथरा रहे थे
फिर भी
तुमने अपने होठों को मेरे
होठों पर रख दिया था
और मैं
देखता रह गया था
यही था
तुम्हारे पहले प्यार का
पहला इज़हार है
तुमने अपनी बाँहों में मुझे भर लिया था
अपने सीने से लगा लिया था
मैं अवाक् सा रह गया था
धड़कन मेरी बढ़ रही थी
मन कुछ कह रहा था
दिल भी कुछ कहना चाहता था
पर तुमने
एक न सुनी थी
और मुझे इतना प्यार किया
कि आज वो प्यार
दिल में ग़म बनकर
चुभ रहा है
हाँ -हाँ मुझे याद है।
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'31' 18th May, 1999
Sunday, May 22, 2011
प्यार का अफसाना
तुमने मुझे अपना समझा
और मैंने तुम्हें अपना जाना
इस तरन बन गया प्यार का अफसाना
तुम देना मेरा साथ
जब तक है
हम दोनों का हाथों में हाथ
न होना कभी तुम जुदा
न करे कभी ऐसा खुदा
क्योंकि
मैंने तुमसे प्यार किया है
और तूने हमसे प्यार किया है
तूने मेरी लूट के खुशियाँ
दे दिए हैं मुझको ग़म
अब मेरे पास
ग़म हैं ज्यादा और खुशियाँ हैं कम
न चलना तुम किसी और की राहों में
रहना हमेशा उसकी बाँहों में
जिससे तुमने प्यार किया है
अपना पहला इज़हार किया है
गर न दिया साथ तुमने तो
ग़म होंगे मेरे दोस्त
दुश्मन होंगी मेरी सारी खुशियाँ।
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'30' 17th May, 1999
और मैंने तुम्हें अपना जाना
इस तरन बन गया प्यार का अफसाना
तुम देना मेरा साथ
जब तक है
हम दोनों का हाथों में हाथ
न होना कभी तुम जुदा
न करे कभी ऐसा खुदा
क्योंकि
मैंने तुमसे प्यार किया है
और तूने हमसे प्यार किया है
तूने मेरी लूट के खुशियाँ
दे दिए हैं मुझको ग़म
अब मेरे पास
ग़म हैं ज्यादा और खुशियाँ हैं कम
न चलना तुम किसी और की राहों में
रहना हमेशा उसकी बाँहों में
जिससे तुमने प्यार किया है
अपना पहला इज़हार किया है
गर न दिया साथ तुमने तो
ग़म होंगे मेरे दोस्त
दुश्मन होंगी मेरी सारी खुशियाँ।
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'30' 17th May, 1999
Thursday, May 19, 2011
इस प्यार को न तुम मरने देना
इस प्यार को न तुम मरने देना
जो करना पड़े कर लेना
जो सहना पड़े सह लेना
अगर तू मेरी निशा है
तो मेरी सुबह भी तू ही है
गर ये प्यार न रहा
तो समझूंगा मैं
ये जहाँ न रहा
इस प्यार के लिए मैं
ज़िन्दगी लुटा सकता हूँ
अपने को मिटा सकता हूँ
ऐ मेरी ज़िन्दगी की सुबह
तुमसे यही है तमन्ना
यही है आरज़ू
कि
इस प्यार को न तुम मरने देना ।
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'29' 31st May, 1999
जो करना पड़े कर लेना
जो सहना पड़े सह लेना
अगर तू मेरी निशा है
तो मेरी सुबह भी तू ही है
गर ये प्यार न रहा
तो समझूंगा मैं
ये जहाँ न रहा
इस प्यार के लिए मैं
ज़िन्दगी लुटा सकता हूँ
अपने को मिटा सकता हूँ
ऐ मेरी ज़िन्दगी की सुबह
तुमसे यही है तमन्ना
यही है आरज़ू
कि
इस प्यार को न तुम मरने देना ।
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'29' 31st May, 1999
Thursday, May 12, 2011
खुशियों से दामन भरा रहे
तू हमेशा खुश रहे
मेरे पास रहे चाहे किसी
और के पास रहे
दूर-दूर रहें ग़म और
खुशियों से दामन भरा रहे
न आँखें तुम्हारी नम हों
न दिल में आये मलाल
बस खुश रहो तुम हर हाल
होठों पे हंसी रहे
चेहरे पे ख़ुशी रहे
मन तुम्हारा हमेशा
खिला-खिला रहे
बाहें तुम्हारी खुली- खुली रहें
बस ऐसे ही ज़िन्दगी तुम्हारी
कटती रहे- कटती रहे
क्योंकि
तुम्हें ऐसे देखकर
"अजनबी" भी खुश रहे।
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'28' 16th May, 1999
मेरे पास रहे चाहे किसी
और के पास रहे
दूर-दूर रहें ग़म और
खुशियों से दामन भरा रहे
न आँखें तुम्हारी नम हों
न दिल में आये मलाल
बस खुश रहो तुम हर हाल
होठों पे हंसी रहे
चेहरे पे ख़ुशी रहे
मन तुम्हारा हमेशा
खिला-खिला रहे
बाहें तुम्हारी खुली- खुली रहें
बस ऐसे ही ज़िन्दगी तुम्हारी
कटती रहे- कटती रहे
क्योंकि
तुम्हें ऐसे देखकर
"अजनबी" भी खुश रहे।
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'28' 16th May, 1999
Wednesday, May 11, 2011
मेरी सारी रुस्वाईयां
बाँहों में तुम्हें लेके करता हूँ महसूस
जैसे मुझे मिल गयी सारी दुनिया
दामन में मेरे आ गयीं सारी खुशियाँ
दूर, बहुत दूर हो गयीं
मुझसे मेरी सारी रुस्वाईयां
अब तो कहता है मन
कि
न टूटे ये बंधन दोस्ती का
बस यूँ ही जुड़ा रहे
ये रिश्ता ख़ुशी का
जिसे कहती है दुनिया
असर है ये आँखें होने का चार
पर मैंने नाम दिया है इसे प्यार
कैसे किया जाता है प्यार
होता है इसमें क्या?
नहीं जनता हूँ
पर
मालूम है इतना जरुर
जब भी याद आती है उसकी
तो देखता हूँ उसको चाँद में !!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'27' 16th May, 1999
जैसे मुझे मिल गयी सारी दुनिया
दामन में मेरे आ गयीं सारी खुशियाँ
दूर, बहुत दूर हो गयीं
मुझसे मेरी सारी रुस्वाईयां
अब तो कहता है मन
कि
न टूटे ये बंधन दोस्ती का
बस यूँ ही जुड़ा रहे
ये रिश्ता ख़ुशी का
जिसे कहती है दुनिया
असर है ये आँखें होने का चार
पर मैंने नाम दिया है इसे प्यार
कैसे किया जाता है प्यार
होता है इसमें क्या?
नहीं जनता हूँ
पर
मालूम है इतना जरुर
जब भी याद आती है उसकी
तो देखता हूँ उसको चाँद में !!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'27' 16th May, 1999
Tuesday, May 10, 2011
रात कटती है आँखों में
आजकल लगता नहीं है मेरा दिल आजकल
इन किताबों में
दुनिया के सारे नजारों में
अक्सर याद आती है उसी की
जो रहता है
हर पल ख्यालों में
बस गए हैं अब तो वो ही ख्वाबों में
कर दिया मुश्किल उसने तो
जीना इन दिनों में
दिन पहाड़ सा होता है और
रात कटती है आँखों में
कब मिलेंगे उससे जो
बैठा है पलकें बिछाए मेरे लिए
याद आ रही है उसकी तो
आज बातों- बातों में
अब तो न जाने कब होंगे
वो मेरी बाहों में
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'26' 14th May, 1999
इन किताबों में
दुनिया के सारे नजारों में
अक्सर याद आती है उसी की
जो रहता है
हर पल ख्यालों में
बस गए हैं अब तो वो ही ख्वाबों में
कर दिया मुश्किल उसने तो
जीना इन दिनों में
दिन पहाड़ सा होता है और
रात कटती है आँखों में
कब मिलेंगे उससे जो
बैठा है पलकें बिछाए मेरे लिए
याद आ रही है उसकी तो
आज बातों- बातों में
अब तो न जाने कब होंगे
वो मेरी बाहों में
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'26' 14th May, 1999
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