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Tuesday, May 31, 2011

सच बताना

डर है कहीं पड़ जाये कम ये ज़िंदगी
तुमसे प्यार के लिए
तुमसे दिल की बातें कहने के लिए
तुम्हें बांहों में भरने के लिए
तुम्हें जी भर के देखने के लिए

तेरी मांग अपने प्यार से भरने के लिए
तेरे पल्लू में तारे टांकने के लिए
तुझे कंगन पहनाने के लिए
तुझे चाहने के लिए
क्योंकि

मैं तुम्हें प्यार करना चाहता हूँ इतना
किया हो किसी ने किसी को इतना
आज रब से दुआ मांग रहा हूँ
बस इतनी ज़िंदगी दे दे मुझे
जी भर के प्यार कर सकूँ तुझे

मेरे यादों के आईने में रहने वाले
क्या तुम भी चाहते हो इतना प्यार जताना
सच बताना- सच बताना - सच बताना

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

'36' 1st June, 1999

Monday, May 30, 2011

वो सुकूँ

शायद पा सकेगी तू वो सुकूँ
जो मिलता था तुझे मेरी बांहों में
लगाएगा जब भी वो तुम्हें अपने सीने से
महसूस करेगी तू इक उलझन
पर,
तू हाँ कर सकती , कर सकती
आखिर तू कर भी क्या सकती
क्योंकि

वो तुम्हारा सुहाग है
तुम्हारी ज़िन्दगी का मालिक है
ऐसे हालातों में
अक्सर याद आएगी तुझे मेरी
दिल रोयेगा और आँख भर आएगी
अश्क भी बहने लगेंगे
पर,
कसम है तुझे अपने प्यार की
आंसुओं को निकलने देना
दिल को रोने देना

अपने प्यार के लिए
एक घूँट समझकर
हँस के पी लेना
क्योंकि
कुछ लोग यहाँ
सहने के लिए ही हैं!!

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

'35' 31st May, 1999

Sunday, May 29, 2011

अधूरा ख्वाब

देखे थे जो सपने
वो अधूरे रह गए
मन में छाई थीं कुछ कल्पनाएँ
वो भी पूरी हुयीं

देखा जब मैंने उस चौखट से
जिस पर बैठा था मैं
जाने कब से

तुमने मेरा दिल तोड़ दिया
मुझे ग़मों के संग
फिर छोड़ दिया
खुशियाँ फिर रूठ गयीं
मुझसे दूर -दूर हो गयीं


काश तुम मेरे पास होती
तो मेरे पास
लाख खुशियाँ होती

पर
सोचने से अब होगा क्या
जाओगी तुम क्या
शायद नहीं शायद नहीं
मेरी किस्मत ही ऐसी है
जो इस वक़्त
मैं बिलकुल अकेला हूँ!!

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

'34' 24th May, 1999

Friday, May 27, 2011

महबूब आने वाला है

राह देख रहा हूँ मैं तेरी
जाने कब से
बैठा हूँ आज चौखट पर
पलकें बिछाए हुए
दिल को समझाए हुए
कि

आज मेरा महबूब आने वाला है
जाने कितनी बार आया हूँ
उस दरवाज़े पर
जहाँ से तुम्हारा दीदार करना है
दिल में बिठाना है
आँखों पे सजाना है

कभी गली देखता हूँ
कभी चौराहा देखता हूँ
लगता है मानो तुम रहे हो

इंतज़ार कि घड़ियाँ और
दिल की दूरियां दूर करो
बस
हर ग़म को आज
ख़ुशी में बदल दो

मैं सिर्फ इतना जानता हूँ
कि मैं तुम्हें चाहता हूँ
सारी दुनिया को बताना चाहता हूँ
कि
आज मेरा महबूब
मेरी ज़िन्दगी का मालिक
आने वाला है !!!!

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी'

'33' 24th May, 1999

Thursday, May 26, 2011

कैसे करूँ तारीफ तेरी

नहीं हैं मेरे पास वो शब्द
जो कर सकें तारीफ तेरी
कहाँ से लाऊं वो शब्द
जो कर सकें तारीफ तेरी
किसके रूबरू करूँ तुझे
नहीं रहा है समझ में मुझे

इस दुनिया में
नहीं है कुछ ऐसा
जिसे मान सकूँ कि
ये है तेरे जैसा
तुम हो सबसे जुदा सबसे अलग

मैं जो कहना चाहता हूँ
तुम वो सुनना चाहती हो
मैंने वो कह दिया
तूने भी सुन लिया
बस यही हैं वो शब्द
जो कर रहे हैं तारीफ तेरी
"अजनबी" सोच रहा है आज
कैसे करूँ तारीफ तेरी

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

'32' 1st June, 1999

Monday, May 23, 2011

हाँ -हाँ मुझे याद है

हाँ -हाँ मुझे याद है
वो तेरा प्यार भरा
पहला चुम्बन
जबकि
हाथ तुम्हारे काँप राहे थे
चेहरा सफ़ेद हो रहा था
होंठ ही थरथरा रहे थे
फिर भी
तुमने अपने होठों को मेरे
होठों पर रख दिया था
और मैं
देखता रह गया था
यही था
तुम्हारे पहले प्यार का
पहला इज़हार है

तुमने अपनी बाँहों में मुझे भर लिया था
अपने सीने से लगा लिया था
मैं अवाक् सा रह गया था
धड़कन मेरी बढ़ रही थी
मन कुछ कह रहा था
दिल भी कुछ कहना चाहता था
पर तुमने
एक सुनी थी
और मुझे इतना प्यार किया

कि आज वो प्यार
दिल में ग़म बनकर
चुभ रहा है

हाँ -हाँ मुझे याद है

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

'31' 18th May, 1999

Sunday, May 22, 2011

प्यार का अफसाना

तुमने मुझे अपना समझा
और मैंने तुम्हें अपना जाना
इस तरन बन गया प्यार का अफसाना
तुम देना मेरा साथ
जब तक है
हम दोनों का हाथों में हाथ

होना कभी तुम जुदा
करे कभी ऐसा खुदा
क्योंकि
मैंने तुमसे प्यार किया है
और तूने हमसे प्यार किया है
तूने मेरी लूट के खुशियाँ
दे दिए हैं मुझको ग़म

अब मेरे पास
ग़म हैं ज्यादा और खुशियाँ हैं कम
चलना तुम किसी और की राहों में
रहना हमेशा उसकी बाँहों में
जिससे तुमने प्यार किया है
अपना पहला इज़हार किया है
गर दिया साथ तुमने तो
ग़म होंगे मेरे दोस्त
दुश्मन होंगी मेरी सारी खुशियाँ

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

'30' 17th May, 1999

Thursday, May 19, 2011

इस प्यार को न तुम मरने देना

इस प्यार को तुम मरने देना
जो करना पड़े कर लेना
जो सहना पड़े सह लेना

अगर तू मेरी निशा है
तो मेरी सुबह भी तू ही है
गर ये प्यार रहा
तो समझूंगा मैं
ये जहाँ रहा

इस प्यार के लिए मैं
ज़िन्दगी लुटा सकता हूँ
अपने को मिटा सकता हूँ
मेरी ज़िन्दगी की सुबह

तुमसे यही है तमन्ना
यही है आरज़ू
कि
इस प्यार को तुम मरने देना ।


-
मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

'29' 31st May, 1999

Thursday, May 12, 2011

खुशियों से दामन भरा रहे

तू हमेशा खुश रहे
मेरे पास रहे चाहे किसी
और के पास रहे
दूर-दूर रहें ग़म और
खुशियों से दामन भरा रहे

आँखें तुम्हारी नम हों
दिल में आये मलाल
बस खुश रहो तुम हर हाल

होठों पे हंसी रहे
चेहरे पे ख़ुशी रहे
मन तुम्हारा हमेशा
खिला-खिला रहे

बाहें तुम्हारी खुली- खुली रहें
बस ऐसे ही ज़िन्दगी तुम्हारी
कटती रहे- कटती रहे
क्योंकि
तुम्हें ऐसे देखकर
"अजनबी" भी खुश रहे

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

'28' 16th May, 1999

Wednesday, May 11, 2011

मेरी सारी रुस्वाईयां

बाँहों में तुम्हें लेके करता हूँ महसूस
जैसे मुझे मिल गयी सारी दुनिया
दामन में मेरे गयीं सारी खुशियाँ
दूर, बहुत दूर हो गयीं
मुझसे मेरी सारी रुस्वाईयां

अब तो कहता है मन
कि
टूटे ये बंधन दोस्ती का
बस यूँ ही जुड़ा रहे
ये रिश्ता ख़ुशी का

जिसे कहती है दुनिया
असर है ये आँखें होने का चार
पर मैंने नाम दिया है इसे प्यार

कैसे किया जाता है प्यार
होता है इसमें क्या?
नहीं जनता हूँ
पर
मालूम है इतना जरुर
जब भी याद आती है उसकी
तो देखता हूँ उसको चाँद में !!

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

'27' 16th May, 1999

Tuesday, May 10, 2011

रात कटती है आँखों में

आजकल लगता नहीं है मेरा दिल आजकल
इन किताबों में
दुनिया के सारे नजारों में
अक्सर याद आती है उसी की
जो रहता है
हर पल ख्यालों में

बस गए हैं अब तो वो ही ख्वाबों में
कर दिया मुश्किल उसने तो
जीना इन दिनों में
दिन पहाड़ सा होता है और
रात कटती है आँखों में

कब मिलेंगे उससे जो
बैठा है पलकें बिछाए मेरे लिए
याद रही है उसकी तो
आज बातों- बातों में
अब तो जाने कब होंगे
वो मेरी बाहों में


-
मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

'26' 14th May, 1999