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Friday, April 29, 2011

खुशबू

ये दुनिया बदल गयी
ये नज़ारे बदल गए
बदल गया सारा ज़माना

पर मेरे दोस्त तुम बदलना
तुम्हीं से है ख़ुशी तुम्हीं से है ग़म
तुमसे बिछड़कर ये ज़िन्दगी
ज़िन्दगी रहेगी

हो जाएगी काले आसमां की तरह
जिसमें नहीं आता है कुछ और नज़र
सिवाए अँधेरा और कालेपन के

गर तुमने दी जुदाई
और जीवन की राह पर पकड़ा मेरा हाथ
तो मैं हो जाऊंगा
उस फूल की तरह
जो अभी-अभी
कली से फूल बना है

जिसमें रही है इक खुशबू
जो दे रही है गवाही कि
तुम मुझमें हो, मुझमें

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

'19' 23rd Apr. 1999

Thursday, April 28, 2011

सपने

तेरा ये दिल है घर मेरा
नज़रें तेरी हैं मेरी निगाहें
जिनमें
सजाता हूँ मैं कुछ हसीं सपने
जो सच होंगे कभी अपने

इक हरा भरा आँगन होगा
बीच में होगा पानी
घर के ऊपर होंगे कुछ फूल

जिन्हें देखकर
मन लहलहाएगा
और दिल मचल जायेगा
कुछ देर बाद तुम रूठ जाओगी
और मैं मनाऊंगा

हँसना तुम्हारा होगा इशारा
रूठे से मन जाने का
फिर भर लोगी तुम मुझे अपनी बाहों में
और मैं तुझे अपनी बाहों में
देखेंगे फिर कुछ और
हसीं और हसीं सपने

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

'18' 15th Apr, 1999

Tuesday, April 26, 2011

करीब

ये ज़मीं ये आसमां
ये सितारे
मांगते हैं तुम्हें
क्योंकि
चाहते हैं हम तुम्हें
नज़र कहती है मेरे पास आओ
दिल कहता है मेरे करीब आओ
पर न जाओ तुम किसी के पास
आ जाओ बस मेरे और मेरे पास

नज़रें से नज़रें मिला लो
दिल से दिल को मिला लो
करें फिर कुछ प्यार की बातें
छोड़ कर दुनिया की बातें
याद करें अब वो रातें
जब होता था मेरा चेहरा
तुम्हारे इन हसीं हाथों में

और मैं खो जाता था वहां
नहीं पहुँच सकता कोई जहाँ
लेकिन
जल्दी करो इस दूरी को दूर
बिन तेरे गुजारी रातों को
कर दो अब चूर - चूर

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

'17' 15th Apr. 1999

Thursday, April 21, 2011

यही है तमन्ना

चाहते हैं हम सिर्फ तुमको
और शायद तुम हमको
तुम्हें हो या न हो भरोसा
पर मुझे है पूरा भरोसा
कि

मेरे दिल में सिर्फ तुम हो
तेरे दिल में हम हों न हों
तुमसे मिलने पर ख़ुशी होती है ऐसी
डूबता को मिलने पर किनारा होती है जैसी
तुमसे जुदा होने पर हालत होती है ऐसी
समंदर से लहर जुदा होती है जैसी

टूट पड़ता है ग़म का अम्बार
छिन जाती है दामन से सारी ख़ुशी
जब कोई करता है बातें जुदाई
कि

बिछड़ना, न होना जुदा
यही है तमन्ना , यही है आरज़ू !!!!


- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

'16' 15th Apr. 1999

Monday, April 11, 2011

किताबें


जब कभी सोचता हूँ दुनिया के नजारों में

तो इनका हल ढूंढता हूँ अपनी किताबों में


नहीं आता मुझे जब कुछ याद

तो खो जाना चाहता हूँ अपनी किताबों में


उसे यहाँ खोजता हूँ वहाँ खोजता हूँ

लेकिन देखता हूँ उसे अपनी किताबों में


नहीं होता है जब कोई मेरे साथ

तो दिल को लगाता हूँ अपनी किताबों में


ईश्वर ने बनाया है इसे सोच समझकर

इसलिए इंसान मिल जाना चाहता है अपनी किताबों में


जब भी आता है मेरे ऊपर कोई ग़म

तो ख़ुशी तलाश करता हूँ अपनी किताबों में


- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

'15' 15th Apr. 1999