समझदार होते हुए भी मैं
हो गया न समझदार
कहाँ गया वो भोलापन
कहाँ गयी वो समझदारी
जिसे मानता था मैं धरोहर
पाया हूँ जब से प्यार तुम्हारा
हो गया हूँ मैं तो पागल
कसम से मेरे जाने जाँ
नहीं है होश अब तो
नज़र आते हो चारों ओर
बस अब तुम्हीं तो हो !
क्या करूँ , क्या न करूँ ?
नहीं आता है अब तो
समझ में !!!
-मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
"8" 25th Jan, 1999
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Thursday, July 08, 2010
बेवफा
न होना कभी तुम बेवफा
रहना हमेशा बावफा
करते हैं तुमसे ऐसी ही आशा
ज़िन्दगी में न देना कभी तुम निराशा
तुम बिन ये जीवन
जीवन नहीं
बिन पानी के बरसात सा
रह जायेगा!
अगर तुम न मिल सके
तो इस सफ़र का
शायद यहीं अंत हो जायेगा।
गर न दिया साथ तुमने
तो
ये ऑंखें बरस पड़ेंगी और
ये दिल कह उठेगा
बेवफा! बेवफा! ओ बेवफा!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी"अजनबी"
16th Jan, 1999, '7'
रहना हमेशा बावफा
करते हैं तुमसे ऐसी ही आशा
ज़िन्दगी में न देना कभी तुम निराशा
तुम बिन ये जीवन
जीवन नहीं
बिन पानी के बरसात सा
रह जायेगा!
अगर तुम न मिल सके
तो इस सफ़र का
शायद यहीं अंत हो जायेगा।
गर न दिया साथ तुमने
तो
ये ऑंखें बरस पड़ेंगी और
ये दिल कह उठेगा
बेवफा! बेवफा! ओ बेवफा!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी"अजनबी"
16th Jan, 1999, '7'
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