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Thursday, December 30, 2010

आईना

देखती है जब वो आईना
तो नज़र आता है उसे चेहरा मेरा
क्योंकि
उसका चेहरा भी इक आईना है
जिसमें दिखता है चेहरा मेरा

मेरे हमराही
देखता हूँ जब मैं चेहरा तेरा
खिल उठता है तन मन मेरा
बजने लगता है सितार
गूंज उठती है शहनाई
और कहता है ये दिल
मत मेरे दिल को इतना सताओ
अब और भी तड़पाओ
बस अब करीब और
जल्दी ही मेरे करीब जाओ !

मान लो दिल की बात
चलें फिर साथ- साथ
उस रास्ते पर, जहाँ मंजिल भी
है या नहीं ????

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी'

'14' 8th Apr., 1999

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