देखती है जब वो आईना
तो नज़र आता है उसे चेहरा मेरा
क्योंकि
उसका चेहरा भी इक आईना है
जिसमें दिखता है चेहरा मेरा
ऐ मेरे हमराही
देखता हूँ जब मैं चेहरा तेरा
खिल उठता है तन मन मेरा
बजने लगता है सितार
गूंज उठती है शहनाई
और कहता है ये दिल
मत मेरे दिल को इतना सताओ
अब और भी न तड़पाओ
बस अब करीब और
जल्दी ही मेरे करीब आ जाओ !
मान लो दिल की बात
चलें फिर साथ- साथ
उस रास्ते पर, जहाँ मंजिल भी
है या नहीं ????
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी'
'14' 8th Apr., 1999
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